Type Here to Get Search Results !

दुनिया यथार्थ की

0

 लिखा गया कुछ,उसे पढ़ा गया कुछ,



निराकार माटी को गढ़ा गया कुछ,
विस्तृत वितानों का छोटा ह्रदय,
सारे फकीरों को लूटने का भय।
गढ़ी कथा मैने भी स्वार्थ की,
दुनिया अलग है यथार्थ की।

मैं से मैं तक के
सारे ताने-बाने,
सच्चे से झूठे से
छलते बहाने।
एक रंग देख रहे
युग से,सदी से,
दाताओ की तुलना
बहती नदी से।

नदियां ठहर कर सुने कब प्रशंसा,
बातें अजब परमार्थ की,
दुनिया अलग है यथार्थ की।

एक युद्ध हार और
एक जीत के लिए,
एक युद्ध यूँ ही
औ एक रीत के लिए।
बह जाने दो आंसू
माँ की आँखों से,
कह दो की थमी रहे,
अपनी सांसो से।

मरघट की आँखों में आँसू कहाँ है,
बातें कन्हाई की, पार्थ की,
दुनिया अलग है यथार्थ की।

एक पंथ पर चले
चलने के खातिर,
और पुनः चले दिवस
टलने की खातिर।
घर से पनघट तक
फिर-फिर उस लछ्य से,
फिर-फिर डगर तक।

पनिहारिन प्यासी की प्यासी ही रह गई,
थी बद्दुआ किस कृतार्थ की।
दुनिया अलग है यथर्था की।।

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Advertise this