धर्मशास्त्रों में दर्शित स्वर्ग-नरक सभी को रोमांचित करते है,पर आज तक किसी ने देखा नहीं| चाहे ये अन्यत्र भले न हो पर इस धरती पर अवश्य हैं। दुनिया का हर व्यक्ति इसका अनुभव करता है,पर समझता नहीं। यहीं स्वर्ग से सुख है और नरक जैसे दुःख भी। जिस समाज में शांति, सदभाव और भाईचारा है वहीं स्वर्ग है क्योंकि वहां सुख-समृद्धि है। इसके विपरीत जहाँ इनका आभाव है वहीं नरक है। क्योकि वहां हिंसा,नफरत, द्वेष, और अशांति के सिवा कुछ नहीं होता। स्वर्ग और नरक की परिभाषा भी यही है। यह पूर्णतः मनुस्य पर निर्भर है कि वह किसकी स्थापना करना चाहता है। इसके लिए अन्य कोई करक जिम्मेदार नहीं।
anmol vachanगीता के सोलहवें अध्याय में श्रीकृष्ण कहते है-स्वयं का नाश करने वाले नरक के तीन द्वार हैं-काम, क्रोध, और लोभ। आत्मकल्याण चाहने वाले पुरुष को इनका परित्याग कर देना चाहिए। जो इनके वशवर्ती होकर जीते है, उन्हें न कभी सुख मिलता है न शांति। मानस के सुंदरकांड में बाबा तुलसीदास भी रावण से विभीषण के माध्यम से यहीं कहते है-हे नाथ। काम, क्रोध, लोभ और मोह नरक के पंथ है। इनका परित्याग कर दीजिये, पर वह नहीं माना। परिणाम किसी से छिपा नहीं है। वस्तुतः संसार में होने वाले सभी अपराधों के मूल में यहीं है, जो दुनिया को नरक बनाते है। Read More