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Shayari with Bashir Badr

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 कोई काँटा चुभा नहीं होता

दिल अगर फूल सा नहीं होता

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफा नहीं होता

गुफ्तगू उनसे रोज होती है
मुद्दतो सामना नहीं होता

जी बहुत चाहता सच बोलें
क्या करे हौसला नहीं होता

रात का इन्तजार कौन करे
आजकल दिन में क्या नहीं होता




जब कभी भी तुम्हारा ख्याल आ गया
फिर कई रोज तक बेख़याली रही

लब तरसते रहे एक हँसी के लिए
मेरी कश्ती मुसाफिर से खाली रही

चाँद तारे सभी हम सफर थे मगर
जिंदगी रात थी रात काली रही

मेरे सीने पे खुश्बू ने सर रख दिया
मेरी बाँहो में फूलो की डाली रही

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